‘खुशोमंत्र’

‘खुशोमंत्र’

सृष्टि की रचना के साथ-साथ कई ऐसी रचनाएं हैं,जो प्रमाणित है और साक्षात है|यदि विचार करें तो बहुत से महाकाव्यों, महान ग्रंथों, मंत्र और श्लोकों की रचनाएं हुई हैं और इन्हीं का सहारा लेकर इन्हीं से प्रेरणा लेकर मानव सभ्यता आगे बढ़ी| विकास का पहिया घूमता रहा| युग बदला, वर्तमान इतिहास में बदल गया और भविष्य की चिंताओं में मानव प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता गया|

मैं आज ना भूतकाल की बात करूंगी ना भविष्य की, हमारे समक्ष होता है तो सिर्फ वर्तमान क्योंकि वर्तमान में किया गया कर्म ही हमारा इतिहास बनता है और उसी का फल हमें भविष्य में मिलता है| तो क्यों ना अपने वर्तमान को ही हम समृद्ध और शक्तिशाली बनाएं, खुशहाल बनाएं|

बहुत छोटी सी बात है खुश रहना, लेकिन कुछ लोगों के लिए बहुत बड़ी और बहुत ही मुश्किल बात भी हो सकती है| मेरी राय में खुश रहना और खुश रखना दोनों ही अपने आप में एक ऐसी कला है जो हर व्यक्ति को सीखनी चाहिए| हर व्यक्ति में होती तो है बस उसे पहचानता नहीं| हम चाहे तो छोटी-छोटी घटनाओं में, छोटे-छोटे पलों में भी खुशी के पल ढूंढ सकते हैं| उन पलों को खुश रह कर बिता सकते हैं| समय की गति बहुत तेज है| हर पल बीता जाता है और उस बीते पल को हम याद जरूर करते हैं|तो फिर अपनी याद में हम खुशी को ही क्यों तलाशते हैं? या यूं कह लीजिए कि बीते हुए पलों को याद कर हम सिर्फ खुश रहना क्यूँ चाहते हैं?

तो आइए, आज मैं आपके साथ खुश रहने के मंत्र को साझा करती हूँ| मैंनें इसे नाम दिया है ‘खुशोमंत्र’|

परेशानी तब सामने आती है, जब हम अपने हिसाब से अपनी चाहत के हिसाब से सामने वाले को देखते हैं और चाहते हैं कि जैसा हम चाहते हैं वैसा ही सामने वाला हो| या जैसा मुझे अच्छा लगता है बस सामने वाला वैसा ही बर्ताव करे | आप अपने सामने वाले पर हावी  क्यों होते हैं? आपका व्यक्तित्व,आपका चरित्र, आप हैं!! सामने वाला वह है, जो वह है|

अब यहाँ सबसे बड़ी बात आती है- सम्मान और स्वीकारने की| यह दो ही मूल बातें हैं| यदि इन दो बातों को हमने अपना लिया तो मानो सब कुछ पा लिया| जिस तरह सौरमंडल में सारे नक्षत्र, नौ ग्रह एक साथ रहते हुए भी व्यवहार में, कार्य में, आकार में, कर्म में ,एक दूसरे से भिन्न है| इसी प्रकार बहुत से ऐसे उदाहरण है जैसे- धरती,आकाश, अग्नि, जल, पवन इन पंचतत्वों से मिलकर हम बने हैं तो हम एक से कैसे हो सकते हैं?

खुश रहना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने आस-पास के लोगों को वही सम्मान दो! वही इज्जत दो! वही शब्द दो! जो आप अपने आप से चाहते हैं| एक छोटा सा उदाहरण मैं दूंगी- यदि आपके हाथ में 1 गेंद है जिसे आप सामने की दीवार पर पूरे जोर से फेंक कर मारते हैं, तो उसी गति से आपको वापस मिलेगी, जिस गति से आपने उसे दीवार पर फेंक कर मारा है| बस आप समझ गए होंगे हमारे और आपके द्वारा मुख से निकाले गए शब्द और हमारा व्यवहार भी इसी गेंद की तरह है और हमारे सामने की दीवार हमारा समाज हमारे दोस्त हमारे रिश्तेदार हैं| जिस तरह के शब्द जिस तरह का व्यवहार हम सामने वाले से करेंगे| ठीक उसी प्रकार का व्यवहार वे हमारे साथ करेगें| यदि आप खुश रहना चाहते हैं तो आप वैसा ही करें जैसा आप अपने प्रति चाहते हैं |

फिर देखिए आपके मुखारविंद से होने वाली पुष्प वर्षा यह सुमन बृष्टि सारे जगत को सुगंधित हवा से सराबोर कर देगी|आप सुगंध से उन्मुक्त होकर सुख के स्वच्छंद संगीत की रचना करेंगे| उस गीत को नए स्वर और नए बोल देंगे, आपका मन मस्तिष्क थिरक उठेगा| सृष्टि में सुख का संचार होगा| यह सृष्टि आपकी अपनी बनाई हुई है| जहां आप रहते हैं, जहां हम रहते हैं|इसे सुगंधित रखिये और आइए मेरे साथ मिल कर इस उपवन में खुशहाल फूलों की नई पौध तैयार करें|

 

उषा शर्मा