स्वीकारो, स्वीकारो और स्वीकारो !

स्वीकारो, स्वीकारो और स्वीकारो !

आज विश्व में इतनी उथल-पुथल है कि सारी सृष्टि ही बदल गई है| मानव मस्तिष्क बदल गया, विचार बदल गए, व्यवहार बदल गए| कहा जाए तो हमारे आसपास की सारी दुनिया ही बदल गई है| तो फिर हम क्यों नहीं बदले ? हम क्यों वैसे के वैसे ही हैं? मैं बात कर रही हूँ अपने काम करने के तरीके की ….एक दूसरे से बात करने के तरीके की… लोगों को जानने पहचानने के तरीके की…. हर इंसान जिंदगी को अपने तरीके से जीता है, फिर भी हम सब साथ रहते हैं न ! हम किसी कार्य को उसकी सफलता की राह तक ले जाते हैं पर उस राह में आने वाली कठिनाइयों को अगर थोड़ा सा समझ ले तो यह यात्रा बहुत आसान हो जाती है|

विद्यार्थियों और शिक्षकों की वो आवाजें जो हर पल स्कूल में गूंजा करती, आज एक भयावह विनाशकारी विषाणु के आक्रमण से शांत हो घर के किसी कोने में बंद है| अपने में ही कैद होकर रह गईं हैं | अब दिखाई और सुनाई देती है तो कंप्यूटर की खिड़की के इस पार – उस पार ……..

मैं हिंदी भाषा की शिक्षिका हूँ और मैनादेवी बजाज इंटर नेश्नल स्कूल के विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभव को यहाँ साझा कर रही हूँ|

‘ऑनलाइन टीचिंग ऑनलाइन लर्निंग’  बस अब यही नाम रह गया है अध्यापन का| हम सब अपने-अपने काम में रहते हैं और भरपूर कोशिश करते हैं कि कोई कमी ना रह जाए| पढ़ाए जाने के काम को इस कदर निभा रहे हैं जैसे ईश्वर की आराधना कर रहे हों| फिर क्या हम ये सोच रहे हैं कि इस काम को करते समय हम कितनी झुंझलाहट कितने गुस्से और कभी-कभी अपमान का भी सामना कर रहे हैं| कभी हम कहते हैं बच्चे हमें जवाब नहीं दे रहे, जो हम पढ़ाते हैं उस पर ध्यान नहीं दे रहे , कभी कक्षा में आते हैं कभी चले जाते हैं और अपने क्रोध की ज्वाला उन पर उड़ेल देते हैं| गुस्सा कर देने के बाद हमें लगता है हमने अपना काम कर दिया| अभिभावकों से बच्चों के द्वारा किए गए व्यवहार की शिकायत कर दी और अपना काम खत्म हुआ|

पर यदि शांत मन से और ध्यान लगाकर सोचा जाए, तो यह गलत नहीं है जो बच्चे कर रहे हैं | कभी सोचा है कि हमने तो इसे अपना लिया पर कितनी मुश्किल हुई होगी पढ़ने वाले उन बच्चों को जिन्हें मानसिक रूप से बांधकर फोन ,लैपटॉप ,कंप्यूटर के आगे बिठा दिया गया और घंटो इन्ही के सामने बैठकर परेशानियों का सामना करते हुए अध्ययन करने को कहा गया |

आज हमें यह स्वीकारना होगा कि अध्यापन का तरीका बदल गया है पढ़ने का भी और पढ़ाने का भी| विद्यार्थी के मन में चल रहे विचारों को जानना होगा| आज हम शिक्षकों का दायित्व और भी बढ़ गया है | हमें उनके मस्तिष्क के साथ-साथ उनके मन को भी समझना होगा| यदि वे बैठकर नहीं पढना चाहता तो उन्हें खड़ा होने दो, कुछ पल अपने साथियों से बात करना चाहते हैं तो आप भी शामिल हो जाओ उनके विचारों में, उनकी खुशियों में | हमारा दायित्व बस यह है कि हम समझें जो वो कह रहे हैं, दिल और दिमाग दोनों से | हमें स्वीकारना होगा उनकी सभी बेचैनियों को जिन्हें वो महसूस करते हैं जिन्हें वो हम से साझा करना चाहते हैं|

मैं 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ा रही थी| सभी के कैमरे ऑन थे सिवाय एक को छोड़ कर | मैंने उसे कहा –“बेटा आप मुझे नही दिख रहे |”

“नेटवर्क बहुत ख़राब है आज|” उसकी आवाज आई |

मैंने मान लिया और कई बार ये सिलसिला चलता रहा | एक दिन मेरा पारा चढ़ गया और झुंझला कर मैंने कहा – “कक्षा से बाहर निकलो यदि कैमरा ऑन नही करना है|” मेरे कहने के कुछ क्षणों बाद वह मुझे दिखा परन्तु अब आवाज नही थी |बहुत ही विनम्र और शांत भाव से उसने मुझे मेसेज बॉक्स में लिख कर भेजा | मैडम ! “नेटवर्क बहुत ख़राब आता है जहाँ मैं रहता हूँ, यदि केमरा ऑन होगा तो आवाज़ नही और आवाज़ होगी तो केमरा नही|” आप जो भी पढ़ाती हैं मैं वह सब सीखता हूँ |

कुछ पल के लिए मुझे बहुत आत्मग्लानि भी हुई कि इतने वर्षों के अनुभव के बाद भी मैं सच कैसे नही पकड़ पाई ? पर क्या करें ये ऑनलाइन पढ़ाना हमारे लिए भी तो नया है | मैंने इसे ‘स्वीकारा’ | बहुत कठिन समय है परंतु हमें वक्त देना होगा | जानना होगा उनके मन में चल रहे नये नये विचारों को, धैर्य के साथ सुनना होगा उनके मन के संगीत को और उनके साथ मिलकर रचना करनी होगी नये सुरों की, नये रागो की | अपनाना होगा नया आलाप |

नवसंगीत का सृजन होगा सृष्टि में जब अध्ययन और अध्यापन का नया सुर छिड़ेगा, नई तरंगे उठेंगी विद्या के सागर में ………|

उषा शर्मा
हिंदी अध्यापिका